मेरी माँ से विरह शर्त पर
इस संसार का सारा धन
सम्पदा अकूत, पृथ्वी सारी
मुझको मिलना तय हो, तो भी
अपनी माता के चरणों में
बस एक पल और बिताने को
माता अपनी के आँचल में
बस एक घड़ी सो जाने को
मैं यह सब क्या सिंघासन का भी
स्वयं स्वर्ग के राजा का
क्षण भर में बहिष्कार कर दूँ
एक पल में तिरस्कार कर दूँ
क्या बात—–
माँ के बदले स्वर्ग भी स्वीकार नही,
माँ के प्यार सा दुनियाँ में कोई प्यार नहीं।
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बिना शर्त के प्रेम बस माँ ही कर सकती है
वास्तविक प्रेम यही है
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Bilkul sahi kaha aapne…
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Kafi acha likthe ho….
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धन्यवाद
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